Friday, September 11, 2015

ताख में रखे सिद्धांत...

- संजीव परसाई 
वैसे तो सिद्धांतों की कोई कीमत नहीं रही है लेकिन इसका झुनझुना बहुत बजाया जा रहा है। कुछ लोग सिद्धांतों की फेरी लेकर द्वारे द्वारे घूम रहे हैं। ले लो सिद्धांत ले लो....बडे़, छोटे, पतले, मोटे काम-बेकाम के सिद्धांत टके सेर ले लो। एक टीवी चैनल का मालिक सिद्धांतों की ढपली लेकर इतवार को गाना सुनाता है। सोमवार को उसका न्यूज एडीटर रिश्वत मांगने के आरोप में धर लिया जाता है। एक अखबार मालिक ने अपने अखबार को सिद्धांत और ज्ञान का बाजा बना रखा है। वे सरकारों और नेताओं को सिद्धांतों का ज्ञान बांट रहे थे। सिद्धांतों को लेकर वे सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। अचानक खबर आई कि वे असल में सरकार से अपने लिए प्राइम लोकेशन की जमीन टके रेट से चाह रहे थे। फिलहाल उन्होंने सिद्धांतों को ताख में रखा हुआ है। जमीन की फाइल प्रचलन में है।
आम आदमी ने अपने सिद्धांत पाल रखे हैं। असल में वह इनके पालन के लिए अभिशप्त है। उसे लगता है कि वोट देकर उसने लोकतंत्र को खरीद लिया है। सरकार से नाली-खडंजा साफ करवाने से लेकर लड़के की नौकरी तक चाहता है। उसे हर सुविधा कम कीमत पर या मुफ्त में चाहिए। उसके सिद्धांत समय सुविधा के अनुसार बदलते रहते हैं। जो उसके लतखोर व्यक्तित्व का कारण बनते हैं। अधिकारी वर्ग अपने सिद्धांतों की डफली अलग बजा रहा है। सड़सठ सालों से देश को जागीर की तरह भोगा। जगह-जगह पर सैद्धांतिक अड़ंगे झोंक रखे थे। ये करना है तो ये परमीशन, वो करना है वो परमीशन। इनके सिद्धांत व्यक्ति के अनुसार बदलते रहते हैं। उदाहरण के लिए वीआईपी इलाके में सड़क हफते भर में बनती हैं और बिना खराब हुए सालों चलती हैं। लेकिन आम इलाके में वही सड़क सालों में बनती है और बनते ही खराब भी होने लगती है।
विकास के इस युग में आध्यात्मिक सिद्धांतों की भी खासी मांग है। आध्यात्म के नये नये व्यापारी आजकल बाजार में आकर अपनी दुकान जमा चुके हैं। वे देश की अर्थव्यवस्था में अपनी तरह से  योगदान दे रहे हैं। पूजा पाठ से लेकर मूठ मारने तक के टोटके बाजार में उपलब्ध हैं। इनके पास आपके नरक हो चुके जीवन को पल भर में राजसी बनाने नुस्खे हैं। ये मूलतः तत्वहीनता के सिद्धांत पर काम करते हैं। तू इस संसार में नंगा आया था नंगा ही जाएगा, जो आज तेरा है वो कल किसी और का था, जो तेरे पास है वह सब भगवान का है और वो मैं हूँ। आप समर्पित हो जाइए इन मॉलनुमा संस्थाओं पर। रुपया, पैसा, संपत्ति परेशानी की जड़ है। आप मोह त्यागिए और वो सब हमपर न्यौछावर कर प्रसन्न हो जाइए। बाकी का काम हमारे बिजिनेस माडल पर छोड़ दीजिए।  
सिद्धांतों के बाजार में सबसे प्रभावी उपस्थिति राजनैतिक सिद्धांतों की हैं। आजकल राष्ट्रवादी सिद्धांतों की खासी मांग हैं। सिद्धांतों में राष्ट्रवादी तड़का समय की मांग है। लेकिन रेसिपी आउटडेटेड होने की वजह से इसमें नए जमाने के मसाले घोंटकर परोसा जा रहा है। राष्ट्रवादी सिद्धांतों के कई प्रकार हैं मेरा राष्ट्रवाद, तेरा राष्ट्रवाद, उसका राष्ट्रवाद, पप्पू का और छुटटन का राष्ट्रवाद सब अलग अलग हैं। इन्हें अपने समय और सुविधा के अनुसार परिभाषित किया जा सकता है।
नवउदारवाद की अपार सफलता के बाद स्वच्छतावाद का सिद्धांत बेहद लोकप्रिय हो रहा है। लोग इसे सरकारी सिद्धांत भी मान रहे हैं। सरकार ने स्वच्छता के सिद्धांत को घर घर तक पहुँचाया। जो आज तक कूड़े पर बैठकर सरकार को कोसा करते थे, वे खुद झाड़ू लेकर उसे साफ कर रहे हैं। इस सिद्धांत के परिपालन की प्रथम शर्त है कि झाड़ू लगाते हुए या थामे हुए सोशल मीडिया पर आपकी एक छबि जरूर होना चाहिए। बाकी काम सफाई कामगार कर ही रहे हैं।
हमारे गांव में दलितों का एक समुदाय है। जो अपने अलावा किसी पर भी भरोसा करके धोखा खाने के लिए मशहूर है। वे गांव के पटैल या धन्नासेठ को अपना भाग्यविधाता मानते हैं।  उनके घर के हर महत्वपूर्ण निर्णय पटैल के दरवाजे पर ही होते हैं। वे आपस में बात करते हुए भी कहते हैं कि मेरी बात मान जाओ नही तो अभी जाउं पटैल के द्वारे। रात-विरात पति-पत्नी के झगड़े भी पटैल के दरवाजे जाते हैं।  इसका कारण उनकी वैचारिक अक्षमता नहीं है, वरन सैद्धांतिक मजबूरी है। वे मानते हैं कि पटैल जो कहेंगे या करेंगे वही सही है। यही व्यवस्था देश के राजनीतिक दलों में भी है। हर दल में एक पटैल मौजूद है जो सारे निर्णय करता है। लोकतंत्र को स्थापित रखने के लिए गठित राजनीतिक दलों में आज तक पटैल सिद्धांत कायम है।

सिद्धांत कई हैं, चुनना आपको है। जरूरी है कि अपना स्वयं का सिद्धांत बनाइए और निकल पडें। सिद्धांत को बदलने के लिए तत्पर रहें, सिद्धांतों को लेकर आपका अड़ियल रवैया उपेक्षा का कारण बन सकता है। आपको समझौतावादी कहकर टारगेट किया जाएगा, लेकिन आप इसे समय की आवश्यकता दर्शाकर मुँह ठेल दीजिए। मैंने अपने सिद्धांत अपने औसारे की ताख पर रख छोड़े हैं। जब जरूरत होती है तो उठाकर उपयोग करता हूँ। वरना वहीं सुरक्षित रखे रहते हैं। कम से कम बचे तो हैं। 

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